कोलकाता यात्रा पर हुए एक तजुर्बे की याद.....
हर तरफ खुदा ही खुदा दिखता है यहाँ
इधर खुदा है, उधर खुदा है,
जिधर देखो उधर खुदा है,
इधर-उधर बस खुदा ही खुदा है
जिधर नही खुदा है….उधर कल खुदेगा!
कल नही तो परसों, लेकिन खुदेगा ज़रूर...
हर तरफ खुदा ही खुदा दिखता है यहाँ
इधर खुदा है, उधर खुदा है,
जिधर देखो उधर खुदा है,
इधर-उधर बस खुदा ही खुदा है
जिधर नही खुदा है….उधर कल खुदेगा!
कल नही तो परसों, लेकिन खुदेगा ज़रूर...
वाह...वाह...शब्दों के हेर फेर से कमाल की रचना प्रस्तुत की है आपने...
जवाब देंहटाएंनीरज
बहुत बहुत शुक्रिया नीरज भाई...
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