बर्बादी
का
अफ़साना
…....
रात
सारी
बैठकर
अपनी
बर्बादी
का
अफ़साना
लिखा
मैंने,
जब
भी
कलम
उठाई
खुद
को
ही
दीवाना
लिखा
मैंने,
ये
वादियां
ये
मंज़र
ये
चाँद
सितारे,
लगते
है
अपने
से,
इन
अपनों
के
बीच
अपने
ही
दिल
को
बेगाना
लिखा
मैंने,
कभी
साथ
रहते
थे
मेरे
वो
साया
बनकर
आज
उन्हीं लम्हों
को
बीता
जमाना
लिखा
मैंने
वो
मुझसे
प्यार
करके
भी
रहते
है
गैरों
के
साथ
उनकी
इस
बेवफ़ाई
को
भी
मज़बूरियों
का
बहाना
लिखा
मैंने
जब
जल
गये
मेरे
अरमान
उसके
पल्लू
में
आकर
तब
उसको
एक
समां
ओर
खुद
को
परवाना
लिखा
मैने
जब
लगी
हाथ
मेरे
मुक़द्दर
की
कलम
खुदा
जानता
है
उनकी
तक़दीर
में
जमाना
ओर
खुद
के
लिए
वीरना
लिखा
मैने......
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