बुधवार, 7 मई 2014

गुज़ारिश-ए-इनायत.....

बस, इतनी सी इनायत मुझ पर एक बार कीजिए...!
कभी आ कर मेरे ज़ख़्मों का दीदार कीजिए...!
हो जाएँ बेगाने आप शौक़ से सनम..!
आप के हैं, आप के रहेंगे एतबार कीजिए...!
पढ़ने वाले ही डर जाएँ देख कर इनको...!
किताब-ए-दिल, को इतना न दागदार कीजिए...!
ना मजबूर कीजिए, कि मैं उनको भूल जाउं..!
मुझे मेरी वफाओं को ना गुनहगार कीजिए...!
इन जलते दियों को देख कर ना मुस्कुराएँ..!
ज़रा हवाओं के चलने का इंतज़ार कीजिए...!
करना है इश्क़ आप से, करते रहेंगे हम...!
जो भी करना है आपको मेरी सरकार कीजिए..!
फिर सपनों का आशियाना बना लिया है मैंने...!
फिर आँधियों को आप खबरदार ना कीजिए...!
हमें ना दिखाएँ ये दौलत, ये शोहरत..!
हम प्यार के भूखे हैं, हमें प्यार कीजिए...!

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