मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

ज़ख़्म-ए-दिल....


छोड़ दी तेरी दुनियां तेरी खुशी के लिए,
जी सकेंगे ना हम अब किसी के लिए,
तेरा मिलना और बिछड़ना एक ख्वाब था,
तेरी चाहत तो थी दिल की लगी के लिए,
मेरे आँगन में हर सू अंधेरा रहा,
चिराग ढूँढा बहुत रोशनी के लिए,
अपनी क़िस्मत में अश्कों की सौगात थी,
हम तरसते रहे तेरी इक हँसी के लिए,
तेरी जुदाई से बड़ा और क्या गम होगा
.'.'.'.'.'.'.'.'.'वैसे..'.'.'.'.'.'.'.'.
ज़ख़्म काफ़ी हैं यही ज़िंदगी के लिए......

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