उसने आख़िरी मुलाक़ात करके,
मेरी ज़िंदगी की रात कर दी..!
अभी ठीक से उसको जाना भी नहीं था,
कि उसने जाने की बात कर दी..!
जिसे नाज़ था ग़ुरबत पे मेरी,
उसने शान पैसों की दिखा कर,
ज़ाहिर मेरी औकात कर दी..!
जिसके लहजे में सिर्फ़ हम तुम हुआ करते थे..
आज उसने शर्मिंदा मुझे,
पूछ कर मेरी जात कर दी..!
जिसकी चाहत में मैने ज़माना छोड़ा,
"आज उसने मुझे छोड़ कर,
वही सियासत मेरे साथ कर दी..!!"
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