मुझ को बनकर याद तेरे दिल में बस जाने दे
आँखों में जो दर्द भरा है आज उसे बरस जाने दे
तू के बनकर शम्मां मुझे परवाना बन जल जाने दे
तेरी आँखों की कही को आज तू ग़ज़ल बन जाने दे
तन्हाईयों में तेरी याद को ही तेरा मंज़र बन जाने दे
तेरे एहसास को आज मेरी साँसों में घुल जाने दे
हिज्र की रात है खुद का मेरा ख्वाब बन जाने दे
चार दिन की जिंदगी है तेरी यादों में गुज़र जाने दे
काली घनी घटाओं की तरह तेरे गेसुओं को बिखर जाने दे
सदीयों का थका हूँ मैं, अपने आगोश में मुझे सो जाने दे
तेरी आँखों की मय को आज नाशाद तू जाम बन जाने दे
तेरा नज़ारा मेरी कलम से आज इक और मधुशाला बन जाने दे...
☆★☆★☆
काली घनी घटाओं की तरह तेरे गेसुओं को बिखर जाने दे
सदियों का थका हूं मैं, अपने आगोश में मुझे सो जाने दे
वाऽऽह…!
बहुत ख़ूब आदरणीय दिलीप जी
सुंदर रचना !
आते रहेंगे आगे भी आपके यहां
:)
मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
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