याद-ए-दोस्ती......
तुम्हारी याद आती है तो हम आँसू बहाते हैं,
गुज़ारे थे कभी जो साथ दिन वो याद आते हैं..
इसी उम्मीद पे हम ने खुला रखा है दरवाज़ा,
सुना है शाम होते ही बिचारे लौट आते हैं..
हक़रत से ना देखो ऐ एह्ले-साहिल तूफान को,
कभी ऐसा भी होता है किनारे डूब जाते हैं..
किसी से क्या गिला ये दस्तूर है ज़माने का,
नये जब यार मिलते हैं पुराने तो भूले ही जाते हैं... ♥
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