खामोशियाँ...
मंगलवार, 5 मार्च 2013
गजब है तेरा नक़ाब साक़ी
!
पिला दे मुझको शराब साक़ी
?
इन्हीं को छूने की आरज़ू है
ये होंठ हैं या गुलाब साक़ी
?
सुना है तेरी ही हाथ से है
इसी का पीना शबाब साक़ी
.
हश्र में कहती हैं तोड़ देंगे
!
ये आप अपना हिजाब साक़ी
.
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